दोस्तों आज हम बात करने जा रहे है काल सर्प दोष (Kaal Sarp Dosh)की । सबसे पहले जानते है की काल सर्प दोष(kaal sarp dosh) होता है या नहीं यह सवाल ही बहुत जरूरी है । काल सर्प दोष की शांति (kaal Sarp dosh shanti) हेतु उज्जैन और त्रयंबकेश्वर में पूजा पाठ किया जाता है। बहुत से लोग मानते हैं कि यदि काल सर्प दोष नहीं होता तो इन जगहों में इतना बड़ा पूजा अनुष्ठान नहीं होता तो आइये जानते हैं कि आखिर सच क्या है? पहले हम बताएंगे कि काल सर्प दोष(kaal Sarp dosh nivaran) क्या होता है क्या कहता और करता है
'कालसर्प' दोष (kaalsarpdosh) भी 'कर्तरी' दोष के समान ही है। वराहमिहिर ने अपनी संहिता 'जानक नभ संयोग' में इसका 'सर्पयोग' के नाम से उल्लेख किया है, काल सर्पदोष (kaal Sarp dosh) नहीं। वहीं, 'सारावली' में भी 'सर्पयोग' का ही वर्णन मिलता है। यहां भी काल और दोष शब्द नहीं मिलता। पुराने मूल या वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में कालसर्प दोष(Kaal Sarp Dosh Nivaran in hindi )का कोई स्पष्ट जिक्र नहीं मिलता है।
हालांकि आधुनिक ज्योतिष में काल सर्प दोष ( kaal Sarp yog)को पर्याप्त स्थान मिला हुआ है। फिर भी पडितो की राय इस बारे में एक जैसी नहीं है। आधुनिक ज्योतिष मानता है कि मूलत: सूर्य, चंद्र और गुरु के साथ राहू के होने को काल सर्प दोष(kaal Sarp dosh nivaran) बनता है। राहू का अधिदेवता 'काल' है तथा केतु का अधिदेवता 'सर्प' है। इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों तो 'कालसर्प' (kaal sarp)दोष कहते हैं। राहू-केतु हमेशा वक्री चलते हैं तथा सूर्य चंद्रमार्गी। मानसागरी ग्रंथ के चौथे अध्याय के 10वें श्लोक में कहा गया है कि शनि, सूर्य व राहु लग्न में सप्तम स्थान पर होने पर सर्पदंश होता है।
जन्म के समय ग्रहों की दशा में जब राहु-केतु आमने-सामने होते हैं और सारे ग्रह एक तरफ रहते हैं, तो उस काल को सर्प योग कहा जाता है। जब कुंडली के भावों में सारे ग्रह दाहिनी ओर इकट्ठा हों तो यह कालसर्प योग (kaal Sarp yog) नुकसानदायक नहीं होता। जब सारे ग्रह बाईं ओर इकट्ठा रहें तो वह नुकसानदायक होता है। इस आधार पर उन्होंने काल सर्प के 12 प्रकार भी बता दिए हैं। कुछ ने तो ढाई सौ के लगभग प्रकार बताए हैं।
ज्योतिषियों ने काल सर्प दोष( Types of kaal sarp Dosh) के 12 मुख्य प्रकार बताएं हैं:- 1. अनंत, 2. कुलिक, 3. वासुकि, 4. शंखपाल, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. तक्षक, 8. कर्कोटक, 9. शंखनाद, 10. घातक, 11. विषाक्त और 12. शेषनाग।...अब ज्योतिषियों अनुसार कुंडली में 12 तरह के कालसर्प दोष(kaal Sarp Dosh) होने के साथ ही राहू की दशा, अंतरदशा में अस्त-नीच या शत्रु राशि में बैठे ग्रह मारकेश या वे ग्रह जो वक्री हों, उनके चलते भी जातक को कष्टों का सामना करना पड़ता है।
उपरोक्त लक्षण बताने के बाद आधुनिक ज्योतिषियों द्वारा इसके उपाय भी बताए जाते हैं। जैसे कि
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क्या लिखा है शास्त्रों में ?
'कालसर्प' दोष (kaalsarpdosh) भी 'कर्तरी' दोष के समान ही है। वराहमिहिर ने अपनी संहिता 'जानक नभ संयोग' में इसका 'सर्पयोग' के नाम से उल्लेख किया है, काल सर्पदोष (kaal Sarp dosh) नहीं। वहीं, 'सारावली' में भी 'सर्पयोग' का ही वर्णन मिलता है। यहां भी काल और दोष शब्द नहीं मिलता। पुराने मूल या वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में कालसर्प दोष(Kaal Sarp Dosh Nivaran in hindi )का कोई स्पष्ट जिक्र नहीं मिलता है।
हालांकि आधुनिक ज्योतिष में काल सर्प दोष ( kaal Sarp yog)को पर्याप्त स्थान मिला हुआ है। फिर भी पडितो की राय इस बारे में एक जैसी नहीं है। आधुनिक ज्योतिष मानता है कि मूलत: सूर्य, चंद्र और गुरु के साथ राहू के होने को काल सर्प दोष(kaal Sarp dosh nivaran) बनता है। राहू का अधिदेवता 'काल' है तथा केतु का अधिदेवता 'सर्प' है। इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों तो 'कालसर्प' (kaal sarp)दोष कहते हैं। राहू-केतु हमेशा वक्री चलते हैं तथा सूर्य चंद्रमार्गी। मानसागरी ग्रंथ के चौथे अध्याय के 10वें श्लोक में कहा गया है कि शनि, सूर्य व राहु लग्न में सप्तम स्थान पर होने पर सर्पदंश होता है।
कैसे बनता है काल सर्प दोष :
जन्म के समय ग्रहों की दशा में जब राहु-केतु आमने-सामने होते हैं और सारे ग्रह एक तरफ रहते हैं, तो उस काल को सर्प योग कहा जाता है। जब कुंडली के भावों में सारे ग्रह दाहिनी ओर इकट्ठा हों तो यह कालसर्प योग (kaal Sarp yog) नुकसानदायक नहीं होता। जब सारे ग्रह बाईं ओर इकट्ठा रहें तो वह नुकसानदायक होता है। इस आधार पर उन्होंने काल सर्प के 12 प्रकार भी बता दिए हैं। कुछ ने तो ढाई सौ के लगभग प्रकार बताए हैं।
ज्योतिषियों ने काल सर्प दोष( Types of kaal sarp Dosh) के 12 मुख्य प्रकार बताएं हैं:- 1. अनंत, 2. कुलिक, 3. वासुकि, 4. शंखपाल, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. तक्षक, 8. कर्कोटक, 9. शंखनाद, 10. घातक, 11. विषाक्त और 12. शेषनाग।...अब ज्योतिषियों अनुसार कुंडली में 12 तरह के कालसर्प दोष(kaal Sarp Dosh) होने के साथ ही राहू की दशा, अंतरदशा में अस्त-नीच या शत्रु राशि में बैठे ग्रह मारकेश या वे ग्रह जो वक्री हों, उनके चलते भी जातक को कष्टों का सामना करना पड़ता है।
काल सर्प दोष के लक्षण : Kaal Sarp Dosh Lakshan
आधुनिक ज्योतिष काल सर्प के लक्षण भी बताते हैं जैसे कि बाल्यकाल घटना-दुर्घटना, चोट लगना, बीमारी आदि, विद्या में रुकावट, विवाह में विलंब, वैवाहिक जीवन में तनाव, तलाक, संतान का न होना, धोखा खाना, लंबी बीमारी, आए दिन घटना-दुर्घटनाएं, रोजगार में दिक्कत, घर की महिलाओं पर संकट, गृहकलह, मांगलिक कार्यों में बाधा, गर्भपात, अकाल मृत्यु, प्रेतबाधा, दिमाग में चिड़चिड़ापन आदि। ये सब काल सर्प दोष के लक्षण हैइसके ज्योतिष उपाय : Kaal Sarp Dosh Nivaran
उपरोक्त लक्षण बताने के बाद आधुनिक ज्योतिषियों द्वारा इसके उपाय भी बताए जाते हैं। जैसे कि
- सबसे उत्तम उपाय है त्र्यम्बकेश्वर में जाकर शांतिकर्म करवाना। इसके अलावा राहू तथा केतु के मंत्रों का जाप करें या करवाएं।
- उज्जैन में नाग सर्प बली अनुष्ठान करवाएं। सर्प मंत्र या नाग गायत्री के जाप करें या करवाएं।
- भैरव उपासना करें या श्री महामत्युंजय मंत्र का जाप करने से राहू-केतु का असर खत्म होता है।
- नागपंचमी को सपेरे से नाग लेकर जंगल में छुड़वाएं। पितृ शांति का उपाय करें। इस तरह के अनेक उपाय बताए जाते हैं।
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